ये कैसा देस है तेरा!

... मुझे तो रास न आया ...

Posted by Tuhin Harit on April 01, 2020 · 1 min read

ये कैसा देस है तेरा!

भूमिका:

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रचना:

तेरा शहर मुझे रास न आया,
समझना चाहा, कुछ ख़ास न आया।
परछाईयाँ तो यहाँ भी इंसान सी है मगर,
मेरे देस जैसा, एहसास न आया ।

शाम का नीला आसमाँ तेरा,
मेरी ज़मीन से मिलता नहीं है क्यों ?
सर्दियों की सहर का गीला धुँआ,
मेरी पलकों में घुलता नहीं क्यों ?

यहाँ अँधेरा भी मुझसे रूठा सा लगता है।
आईना तेरा क्यों मुझे झूठा सा लगता है ?
मेरे कदमों की आहट कुछ अजनबी सी लगती है,
तेरी गलियों में क्यों तेरी ही कमी सी लगती है ?

ये कैसा देस है तेरा, मझें तो रास ना आया,
सुना था मेरे देस सा होगा, पर कुछ और ही पाया ।
कुछ और ही पाया ।।

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